CG: मनरेगा का नाम बदलने पर सियासी संग्राम: कांग्रेस का प्रदर्शन, कहा- रोजगार के अधिकार पर सीधा हमला

CG: मनरेगा का नाम बदलने पर सियासी संग्राम: कांग्रेस का प्रदर्शन, कहा- रोजगार के अधिकार पर सीधा हमला

रायपुर :- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा का नाम बदलने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव ने छत्तीसगढ़ की सियासत को गरमा दिया है। कांग्रेस ने इसे ग्रामीण गरीबों के रोजगार के अधिकार पर हमला बताते हुए राज्यभर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। राजधानी रायपुर के आजाद चौक सहित सभी जिला मुख्यालयों में कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे और भाजपा सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

मनरेगा सिर्फ योजना नहीं, कानूनी अधिकार है

प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस नेताओं ने कहा कि मनरेगा केवल एक सरकारी स्कीम नहीं, बल्कि गांव के गरीब और मजदूर वर्ग के लिए काम पाने का कानूनी अधिकार है। इसे ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन नाम देने से योजना की मूल भावना कमजोर होगी। कांग्रेस का आरोप है कि यह बदलाव महात्मा गांधी के नाम को धीरे-धीरे हटाने और रोजगार की गारंटी को सीमित करने की कोशिश है

ग्रामीणों के अधिकारों पर असर का दावा

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मौजूदा मनरेगा व्यवस्था में गांव खुद तय करते हैं कि किस तरह के काम की जरूरत है और मजदूरों को समय पर मजदूरी मिलती है। नए ढांचे में इन अधिकारों पर असर पड़ सकता है। सरकार भले ही सालाना रोजगार के दिन 100 से बढ़ाकर 125 करने की बात कर रही हो, लेकिन कांग्रेस ने सवाल उठाया कि जब छत्तीसगढ़ में आज भी ज्यादातर परिवारों को 100 दिन का काम नहीं मिल पा रहा, तो 125 दिन का वादा कैसे पूरा होगा।

खेती के मौसम में काम बंद होने पर चिंता

नए प्रावधानों के तहत खेती के मौसम में सरकारी रोजगार के काम नहीं कराए जाने की बात कही जा रही है। सरकार इसे किसानों के हित में बता रही है, लेकिन कांग्रेस का तर्क है कि इससे ग्रामीण मजदूरों के कुल काम के दिन घट सकते हैं और उनकी आय पर सीधा असर पड़ेगा।

राज्यों पर बढ़ेगा खर्च, छत्तीसगढ़ पर असर की आशंका

कांग्रेस ने नए फंडिंग फॉर्मूले पर भी सवाल खड़े किए हैं। पार्टी का कहना है कि योजना के खर्च का 40 प्रतिशत बोझ राज्यों पर डालने से छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए मनरेगा को प्रभावी ढंग से लागू करना मुश्किल हो सकता है। 2023-24 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कांग्रेस ने बताया कि राज्य में प्रति परिवार औसतन सिर्फ 52 दिन का ही रोजगार मिला, जबकि केवल 14 प्रतिशत परिवारों को पूरे 100 दिन का काम मिल पाया।

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