बीएड की अनिवार्यता को लेकर होगी सुनवाई

बिलासपुर, । छत्तीसगढ़ में प्राचार्य पदोन्नति को लेकर कानूनी लड़ाई तेज हो गई है। हाई कोर्ट बिलासपुर में प्राचार्य पद पर पदोन्नति के लिए बीएड अनिवार्य करने को लेकर बहस जारी है। इस मामले में हाई कोर्ट की डबल बेंच में 26 मार्च को अहम फैसला आने की संभावना है।

प्राचार्य पदोन्नति फोरम की कानूनी लड़ाई
प्राचार्य पदोन्नति फोरम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के माध्यम से उन व्याख्याताओं एवं प्रधान पाठकों का पक्ष रखा जा रहा है, जिनके पास डीएलएड, बीटीआई या डीएड की डिग्री है और वे डीपीसी (विभागीय पदोन्नति समिति) में सम्मिलित हैं। प्राचार्य पदोन्नति फोरम के अनिल शुक्ला ने बताया कि प्राचार्य पदोन्नति फोरम की ओर से दो इंटर विनर पिटीशन लगा कर हाई कोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता के द्वारा उन व्याख्याता एवं प्रधान पाठक का पक्ष रखा जाएगा जो कि डी एड/बी टी आई/डी एल एड हैं प्राचार्य पदोन्नति की डीपीसी में सम्मिलित हैं।

लोक सेवा आयोग में चर्चा जारी
प्राचार्य पदोन्नति फोरम के प्रतिनिधियों ने 20 मार्च को लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष रीता शांडिल्य से मुलाकात की थी। इसके बाद डीपीसी प्रक्रिया को पूर्ण कर स्कूल शिक्षा विभाग को भेजने की कार्यवाही तेजी से जारी है। हालाँकि, लोक सेवा आयोग में चर्चा के दौरान जानकारी मिली कि प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में एक-दो दिन का समय और लग सकता है।

बीएड बनाम डीएलएड: विवाद जारी
व्याख्याता अखिलेश त्रिपाठी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि प्राचार्य पदोन्नति के लिए बीएड को अनिवार्य किया जाए और केवल बीएड धारकों को ही यह अवसर मिले। इसके जवाब में, प्राचार्य पदोन्नति फोरम की ओर से व्याख्याता लूनकरण ठाकुर ने हाई कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है।

प्राचार्य: प्रशासनिक या शैक्षणिक पद?
हस्तक्षेप याचिका में तर्क दिया गया है कि प्राचार्य का पद प्रशासनिक होता है, जबकि व्याख्याता शैक्षणिक पद होता है। प्राचार्य के 10 प्रतिशत पदों पर सीधी भर्ती होती है, जिसमें बीएड अनिवार्य है, लेकिन विभागीय पदोन्नति के लिए ऐसा कोई स्पष्ट नियम नहीं है।

फैसले पर टिकी निगाहें
प्राचार्य पदोन्नति फोरम के अनिल शुक्ला ने कहा कि यह मामला केवल एक शैक्षणिक योग्यता का नहीं, बल्कि नीति और नियमों की स्पष्टता का भी है। यदि सीधी भर्ती में बीएड अनिवार्य है, तो पदोन्नति में भी समान नियम लागू होने चाहिए या नहीं, इस पर हाई कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण होगा।

इस केस का नतीजा प्राचार्य बनने की राह देख रहे सैकड़ों शिक्षकों के भविष्य को तय करेगा। 26 मार्च को आने वाले संभावित फैसले पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हुई हैं।

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